‘फैलेगा-फैलेगा हमारा मौन… समुद्र के पानी में नमक की तरह… नसों में दौड़ते रक्त में घुलता हुआ पहुंचेगा दिल की धड़कनों के बहुत समीप….और बोरी से रिसते आटे सा, देगा हमारा पता… हमारे मौन के धमाके से बड़ा उस वक्त कोई धमाका नहीं होगा. (मशहूर कश्मीरी कवि डॉ शशि शेखर तोशखानी की कविता की चंद लाइनें)

27 साल गुजर जाने के बाद भी हम कश्मीरी पंडित अपने ही देश में अभी भी शरणार्थी हैं. डॉ शशि शेखर तोशखानी की यह कविता उनके खामोश विरोध की प्रतीक है’  27 साल बीत जाने के बाद भी किसी ने हथियार नहीं उठाए, क्योंकि हम लोग शांति और हमारे देश की महानता में विश्वास रखते हैं. कोई भी कश्मीरी पंडित नहीं भूल सकता कि 19 जनवरी 1990 को क्या हुआ था. मस्जिदों से घोषणा हो रहा थी और कश्मीरी पंडितों से अपना घर छोड़कर चले जाने के लिए कहा जा रहा था’ कश्मीरी पंडित चुप रहने को मजबूर हैं, लेकिन अब वे और खामोश नहीं रहेंगे. हमारी चुप्पी पूरी दुनिया में गूंजेगी, समुद्र में नमक की तरह, हमारी चुप्पी जवाब मांगेगी क्योंकि हमें हमारी ही जमीन पर परेशान किया गया. (अनुपम खेर, अभिनेता)

 

दुर्भाग्यवश जम्मू-कश्मीर में 27 साल पहले ऐसी परिस्थितियां बनीं कि कश्मीरी पंडित, सिख समुदाय और कुछ मुस्लिमों को घाटी छोड़कर कहीं और शरण लेना पड़ी।  27 साल हो गए, जब घाटी से कश्मीरी पंडितों, सिखों और कुछ मुस्लिमों ने पलायन किया था. लिहाजा, हमें दलगत राजनीति से ऊपर उठकर आज उनकी घर वापसी के लिए एकजुट होना चाहिए. (उमर अब्दुल्ला, नेशनल कॉन्फ्रेन्स के कार्यकारी अध्यक्ष)

जम्मू कश्मीर विधानसभा ने आज (19 जनवरी, 2017) को सर्वसम्मति से कश्मीरी पंडितों और अन्य प्रवासियों की घर वापसी के लिए एक प्रस्ताव पास किया है. इस प्रस्ताव में कहा गया है कि घर वापसी करने वाले प्रवासियों के लिए घाटी में अनुकूल माहौल बनाया जाय.